झील के भीतर बैलूनों में स्टोर होगी अक्षय ऊर्जा

कंप्रेस्ड एयर से बनेगी बिजली   ऊर्जा भंडारण के लिए कनाडा के एक स्टार्टअप ने नयी तकनीक का ईजाद किया है. इसके तहत झील में पानी के भीतर खास गुब...

कंप्रेस्ड एयर से बनेगी बिजली
 
ऊर्जा भंडारण के लिए कनाडा के एक स्टार्टअप ने नयी तकनीक का ईजाद किया है. इसके तहत झील में पानी के भीतर खास गुब्बारों में ऊर्जा का भंडारण किया जा रहा है, ताकि जरूरत के मुताबिक उसकी खपत की जा सके. 
 
क्या है यह नयी तकनीक और कंप्रेस्ड एयर के माध्यम से कैसे वापस हासिल की जा सकती है ऊर्जा आदि समेत जलवायु परिवर्तन के लिहाज से कुछ अन्य देशों में उठाये जानेवाले उल्लेखनीय कदमों के बारे में बता रहा है नॉलेज... 
 
जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से निपटने के लिए दुनियाभर में सोलर और विंड एनर्जी का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है. लेकिन, इन स्रोतों से 24 घंटे बिजली हासिल करना और तत्काल खपत न होनेवाली बिजली को स्टोर करना बड़ी चुनौती है. खासकर सोलर एनर्जी के मामले में यह चुनौती ज्यादा बड़ी है, क्योंकि इसका उत्पादन महज दिन के समय ही होता है. 
 
इससे दिन के समय बिजली आपूर्ति की जा सकती है, लेकिन रात में इसकी जरूरत के लिए इसे स्टोर ही करना होगा. बहुतायत में इस बिजली को स्टोर करना मुश्किल हो रहा है. पारंपरिक बैटरियों में इसे स्टोर करना खर्चीला और अल्पकालिक उपाय है. कनाडा के एक स्टार्टअप 'हाइड्रोस्टोर' ने इस दिशा में एक नयी पहल की है. 
 
इस स्टार्टअप ने एक ऐसे सिस्टम का इजाद किया है, जिसकी मदद से सोलर प्लांट से दिन के समय बहुतायत में हासिल होने वाली ऊर्जा को स्टोर करके रखा जा सकेगा, ताकि रात को बिजली मुहैया करायी जा सके. इसके लिए झील में पानी के भीतर प्रेशराइज्ड बैलून स्थापित किये जा रहे हैं, जिनमें अक्षय ऊर्जा को स्टोर करके रखा जायेगा. इससे डीजल-पेट्रोल या प्राकृतिक गैस आधारित ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भरता कम हो सकती है. 
 
इस स्टार्टअप का दावा है कि एनर्जी स्टोरेज के लिए मौजूदा सर्वश्रेष्ठ बैटरियों के मुकाबले नयी इजाद की गयी तकनीक ज्यादा बेहतर होगी और इसकी लागत भी बहुत कम है. कनाडा की राजधानी टोरंटो के निकट ओंटारियो झील में हाल ही में इस तकनीक का परीक्षण किया गया है.
 
इस झील में 55 बैलूनों की सीरिज को पानी के भीतर स्थापित करते हुए उन्हें तीन किलोमीटर लंबे पाइपलाइन के जरिये पावरग्रिड से कनेक्ट किया गया है. 'हाइड्रोस्टोर' के सीइओ क्यूर्टिस वानवेलेगम का कहना है, 'हवा यानी एयर को स्टोर करने के लिए स्थान तलाशना सबसे मुश्किल काम है. चूंकि इसके लिए हमने हाइड्रोस्टेटिक वाटर प्रेशर का इस्तेमाल किया है, इसलिए हजारों स्थानों की तलाश की गयी. व्यापक शोध से यह साबित हुआ कि कंप्रेस्ड एयर को बैलून में भर कर उसे कई वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.'  
पंप्ड हाइड्रो प्लांट से आया आइडिया     
 
हाइड्रोस्टोर के संस्थापक और प्रेजीडेंट कैमरन लेविस का कहना है कि पंप्ड हाइड्रो प्लांट पर काम करने के दौरान मूल रूप से यह आइडिया उनके दिमाग में आया और वॉनवेलेगम के साथ उन्होंने इसे विकसित करने के लिए टीम तैयार की. इसके बाद ही हाइड्रोस्टोर के काम को आगे बढ़ाया गया. हाल ही में इसके डेमॉन्सट्रेशन प्रोजेक्ट को आधिकारिक रूप से लॉन्च किया गया है. 
 
इस दौरान 660 किलोवॉट घंटे की क्षमता से युक्त प्रोजेक्ट को लॉन्च किया गया, जिससे 330 घरों को बिजली प्रदान की जा सकती है. इस तकनीक की बड़ी खासियत है कि इससे कोई हानिकारक उत्सर्जन नहीं होता है. उल्लेखनीय बात यह है कि पारंपरिक रूप से व्यापक पैमाने पर एनर्जी स्टोरेज के विकल्पों की तरह अंडरवाटर बैलून्स सिस्टम में किसी प्रकार के टॉक्सिक पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया गया है. एनर्जी स्टोरेज की इसकी क्षमता को देखते हुए दुनियाभर में यह आर्थिक लिहाज से भी कारगर साबित होगा.  
कंप्रेस्ड एयर    
 
अंडरवाटर बैलून बनाने में इस्तेमाल किये गये मैटेरियल को तकनीकी रूप से एक्यूमुलेटर्स कहा जाता है. एक्यूमुलेटर्स वह मैटेरियल है, जिसका इस्तेमाल समुद्र में डूबे हुए जहाज को उठा कर पानी की सतह पर लाने वाले जहाज को बनाने में किया जाता है. इस सिस्टम के केंद्र में कंप्रेस्ड एयर ही है. 
 
इसमें एक्सेस एनर्जी (वह ऊर्जा जो इस्तेमाल में नहीं लायी गयी है या बच गयी है) को हाइड्रोस्टोर की प्रोपराइटरी टेक्नोलॉजी के जरिये कंप्रेस्ड एयर में तब्दील कर दिया जाता है. साथ ही इस प्रक्रिया के तहत पैदा होने वाली हीट को हीट एक्सचेंजर के सहारे स्टोर कर लिया जाता है.   
 
टरबाइन चला कर बिजली उत्पादन    
 
झील के पानी में बैलून में स्टोर ऊर्जा की जरूरत होने पर उन्हें सतह पर लाने के लिए झील के नेचुरल प्रेशर का इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रेशर से टरबाइन चला कर बिजली का उत्पादन किया जाता है. फिलहाल ओंटारियो झील में जितने बैलून लगाये गये हैं, उनसे एक छोटे मोहल्ले को बिजली मुहैया करायी जा सकती है. 
 
इस सिस्टम को बनानेवालों का यह भी दावा है कि इस बिजली को आसानी से वितरित किया जा सकता है. वानवेलेगम का कहना है,'हम इस तकनीक को वैश्विक स्तर पर कॉमर्शियल बनाने में जुटे हैं, ताकि ग्रीन एनर्जी स्टोरेज सोल्यूशन को दुनियाभर में विस्तारित किया जा सके. 
 
हाइड्रोस्टोर की तकनीक 
 
1 इलेक्ट्रिसिटी को हवा में तब्दील करना : इलेक्ट्रिसिटी एयर कंप्रेशर को चलाती है, जो इलेक्ट्रिकल एनर्जी को कंप्रेस्ड एयर में तब्दील कर देती है. 
 
2 थर्मल मैनेजमेंट : इस प्रक्रिया के दौरान कंप्रेशन से पैदा हुई हीट को कैप्चर करते हुए इसे स्टोर कर लिया जाता है. इस प्रकार यह इस की कार्यक्षमता को बढ़ाता है. 
3 प्रेशराइज्ड एयर : जिस स्थान पर एक्यूमुलेटर्स मौजूद होते हैं, वहां गहराई में कंप्रेस्ड एयर स्ट्रीम को समान प्रेशर पर दबाया जाता है. 
 
4 एक्यूमुलेटर्स में एयर स्टोर करना : इन एयर्स को पानी में एक्यूमुलेटर्स  में तब तक रखा जाता है, जब तक उपभोक्ताओं के लिए बिजली बनाने की जरूरत न हो. 
 
5  एयर फ्लो को रिवर्स करना : उपभोक्ताओं के लिए बिजली की जरूरत होने पर सिस्टम एयर फ्लो को रिवर्स करता है और जल के प्राकृतिक भार के सहारे इसे पानी के तल से ऊपर की ओर उठाया जाता है. 
 
6  एयर को इलेक्ट्रिसिटी में तब्दील करना : संग्रहित हीट   को वापस एयर स्ट्रीम के साथ मिला दिया जाता है. इसके बाद हीटेड एयर यानी गर्म हवा एक्सपेंडर में जाती है, जिससे जेनरेटर संचालित होता है. जेनरेटर चलने पर ऊर्जा का उत्पादन होता है और उपभोक्ताओं को बिजली मुहैया करायी जाती है.  
 
खासियतें 
 
- केमिकल से मुक्त और पर्यावरण अनुकूलित व मांग के मुताबिक ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम. 
-  बिना किसी क्षमता के नुकसान के 30 वर्षों से ज्यादा समय तक लगातार कार्य करने में सक्षम. 
-  टॉप ग्लोबल सप्लायर्स द्वारा निर्मित और इसके कंपोनेंट्स पूरी तरह सुरक्षित साबित हो चुके हैं. 
-  इस प्रोजेक्ट की निर्माण अवधि महज दो वर्ष निर्धारित की गयी है. 
-  डिस्चार्ज रेटिंग और स्टोरेज क्षमता के मामले में यह अत्यधिक फ्लेक्सिबल है. 
-  इस तरह के अन्य मौजूदा विकल्पों के मुकाबले यह नया सिस्टम पूरी तरह फूलप्रूफ होने के साथ ही इसकी लागत बहुत कम है. 
-  इस सिस्टम के माध्यम से स्टोर की गयी एनर्जी का बहुत कम हिस्सा नुकसान होता है. स्टोर करके रखी गयी ऊर्जा का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा वापस हासिल करने में दक्ष है यह सिस्टम. 
-  एक्सपेंडेबल स्टोरेज कैपेसिटी यानी जरूरत के मुताबिक इसकी भंडारण क्षमता को बढ़ाया जा सकता है. 
- यह सिस्टम बेहद भरोसेमंद है. 
 
ऑस्ट्रिया के सबसे बड़े राज्य में 100 फीसदी ग्रीन एनर्जी 
 
यू रोपीय देश ऑस्ट्रिया के सबसे बड़े राज्य लोअर ऑस्ट्रिया में पिछले महीने से 100 फीसदी स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है. 16.5 लाख आबादी वाले इस राज्य में अक्षय ऊर्जा से हासिल बिजली की सप्लाइ की जा रही है. 
 
फ्रांस की राजधानी पेरिस में मौजूदा आयोजित संयुक्त राष्ट्र मौसम परिवर्तन सम्मेलन में  ऑस्ट्रिया  की इस उपलब्धि की सराहना की गयी है. लोअर ऑस्ट्रिया  के प्रीमियर इरविन प्रोएल का कहना है, 'अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली हासिल करने के लिए व्यापक निवेश की योजना बनायी गयी है.' एएफपी को दिये एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 से सोलर पार्क से लेकर इको-इलेक्ट्रिसिटी व हाइड्रो-इलेक्ट्रिक स्टेशंस के लिए डेन्यूब नदी के इलाकों में 2.8 बिलियन यूरो (3 बिलियन डॉलर) का निवेश किया गया है. 
 
डेन्यूब नदी की अधिकतम क्षमता का दोहन करते हुए प्राकृतिक ऊर्जा हासिल करने के लिए जितने हाइड्रो-इलेक्ट्रिक स्टेशन लगाये गये हैं, उनसे लोअर ऑस्ट्रिया   राज्य की जरूरतों का करीब दो-तिहाई (63 फीसदी) बिजली हासिल होती है. तकरीबन एक -चौथाई (26 फीसदी) बिजली विंड एनर्जी से और नौ फीसदी बायोमास से हासिल होती है. शेष दो फीसदी बिजली सोलर पावर से हासिल होती है. 
 
स्वच्छ ऊर्जा न केवल पर्यावरण के लिहाज से, बल्कि 'ग्रीन जॉब्स' के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट के मुताबिक, अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लिए अब तक किये गये निवेश से लोअर ऑस्ट्रिया   में करीब 38,000 नयी नौकरियों का सृजन हुआ है. साथ ही यह उम्मीद जतायी गयी है कि वर्ष 2030 तक नयी नौकरियों का यह आंकड़ा 50,000 को पार कर सकता है. ऑस्ट्रिया   के अन्य राज्यों में भी इस दिशा में व्यापक निवेश किया जा रहा है. 
 
आज भी इस देश में करीब 75 फीसदी बिजली का उत्पादन स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों से किया जाता है. यूरोपियन यूनियन में ऑस्ट्रिया  इस मामले में सबसे आगे है, जो बिजली का सर्वाधिक प्रतिशत अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करता है. इसके बाद स्वीडन, पुर्तगाल, लाटविया और डेनमार्क का स्थान है. ज्यादातर यूरोपिय देश पर्यावरण का ख्याल रखते हुए धीरे-धीरे स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने में आगे बढ़ रहे हैं. 
 
जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा की ओर
 
को यला और गैस जैसे प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत ग्लोबल वॉर्मिंग का करण बन रहे हैं. विश्व पर्यावरण परिषद का कहना है कि धरती को बचाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का उत्सर्जन खत्म करना होगा. सीओ2 अव्वल दर्जे की ग्रीनहाउस गैस है. धरती पर कोयला, तेल और गैस को जलाने से 65 फीसदी ग्रीनहाउस गैस पैदा होती है. जंगल काटने से 11 प्रतिशत कार्बन गैस बनती है. 
पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली मीथेन (16 प्रतिशत) और नाइट्रस ऑक्साइड (6 प्रतिशत) औद्योगिक कृषि से पैदा होती है. यदि सब कुछ पहले जैसा रहता है, तो विश्व पर्यावरण परिषद आइपीसीसी के मुताबिक, वर्ष 2100 तक धरती का तापमान 3.7 से 4.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जायेगा. लेकिन तापमान को 2 डिग्री पर रोकना मुमकिन है. इसके लिए जीवाश्मों का इस्तेमाल बंद करना होगा. 
 
सौर ऊर्जा सस्ती होती जा रही है. पिछले पांच साल में सोलर प्लांट 80 फीसदी सस्ता हो गया है. पवन ऊर्जा भी किफायती है और उसका प्रसार बढ़ रहा है. छत पर सोलर पैनल लगाने से घर को गर्म रखा जा सकता है. कुछ घर तो इस तरह के सोलर पैनल से अतिरिक्त बिजली भी पैदा करते हैं. 
 
उसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक कार के लिए किया जा सकता है. ब्रिटेन के ब्रिस्टल शहर में अनेक बसें बायोमिथेन गैस से चलती हैं. यह गैस इंसानी मल और कचरे से बनती है. पांच लोग सालभर में जितना मल और कचरा पैदा करते हैं, उससे प्राप्त मीथेन गैस से एक बस 300 किलोमीटर का सफर कर सकती है.     
 

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